कुण्डली मिलान
भारतीय संस्कृति में विवाह शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति मात्र नहीं। यह एक सौदा नहीं है। यह एक समाजिक, सांस्कृतिक धार्मिक संस्कार है। विवाह समाज का आधार है। विवाह दो शरीरों का ही मिलन नहीं है अपितु दो परिवारों का सम्बन्ध बनता है। दो अलग अलग वातावरणों में उत्पन्न, पले तथा बढ़े युवक तथा युवतियों का मिलन है। अलग-अलग वातावरण में पले तथा बढ़े व्यक्तियों की इच्छाएं आकांक्षाएं, उम्मीदें तथा विचार शक्ति सोच भी अलग-अलग होती है। इसलिये दोनों में समन्वय करना, मिलाप करना आवश्यक हो जाता है। गृहस्थ जीवन को रथ के समान माना है। यदि दोनों पहिये एक धुरी पर समान गति से नहीं चले तो गृहस्थ जीवन में समृद्धि आना असंभव हो जाता है। जीवन नरक हो जाता है।
विश्व की प्रत्येक जाति एवं धर्म में विवाह करने की प्रथा है। देश, काल और परिस्थिति के अनुसार विवाह के रीति-रिवाजों में भिन्नता होना स्वाभाविक है। प्रशन यह उठता है कि क्या कुण्डली मेलापक (गुणा मिलान) सबके लिए आवश्यक है ? क्या जो लोग कुण्डली मेलापक (गुणा मिलान) नहीं करवाते वे सुखी तथा समृद्ध नहीं होते ? विश्व में कई जाति एवं धर्म में मेलापक नहीं करते। तो क्या यह परिवार सुखी नहीं ? ऐसी बात नहीं। सुख और समृद्धि तो वहां पर भी है।
दवाई की तो उसको ज्यादा जरूरत होती है जो रोगी होता है अन्य व्यक्ति तो केवल प्रकृति के नियमों का पालन करता हुआ निरोग रह सकता है। मौसम के अनुसार खान-पान तथा वस्त्र धारण करने से भी व्यक्ति निरोग रह सकता है। परन्तु जो रोगी है उसके लिए तो औषध आवश्यक हो जाती है।
के. पी. ज्योतिष द्वारा भावी जीवन साथी ( वर-वधु ) की सम्पूर्ण जानकारी-कर्म, गुण, स्वाभाव आदि- के साथ-साथ उसके संयोग से उत्पन्न होने वाली स्थितियों तथा प्रभावों का भी सही मूल्यांकन किया जा सकता है। जैसे कुण्डली मेलापक (गुणा मिलान) करते समय आगे लिखे गये नियमों का पालन कर लेना श्रेयस्कर रहता है।
परम्परागत ज्योतिष के अनुसार वर वधु की कुण्डली मेलापक (गुणा मिलान) मे केवल 36 गुणों को ही प्रधानता दी जाती है। और व्यक्ति कुण्डली मेलापक (गुणा मिलान) के आधार पर वैवाहिक कार्य सम्पन्न कर लेते हैं जबकि अकेला गुण-मिलान ही दम्पति के भावी जीवन को प्रभावित नहीं करता और ना ही इसे जन्मपत्रियों का मेलापक (गुणा मिलान) किसी भी दशा में कहा जा सकता है। और जन्म-पत्रियों के मिलान से संतुष्ट होकर विवाह करने पर भी उपरोक्त अशोभनीय घटनाओं का होना चिन्ता का विषय है। चिन्ता दाम्पत्य जीवन नष्ट होने की तो है ही परन्तु चिन्ता इस बात की भी है कि इस प्रकार ज्योतिष जैसे पुनीत विज्ञान पर से लोगों का विश्वास उठ सकता है। क्योंकि सुखद दाम्पत्य जीवन के लिए दस विषेष बिन्दुओं पर विचार करना अति आवष्यक है।
1-आयुर्दाय | 6-विवाद |
2-स्वास्थ्य | 7-न्यायालय सम्बन्धित |
3-शिक्षा | 8-परिवारिक सम्बन्ध |
4-आपसी तालमेल | 9-सच्चरित्रता |
5-संतान | 10-आर्थिक स्थिति |