ज्योतिष की विभिन्न पद्धतियों जैसे वृहत् पाराशर होरा शास्त्र, होरासार, जैमिनी, भृगु, मानसागरी, फल दीपिका, सारावली, वृहत् जातक, जातक परिजात, उत्तरा कालाअमृत, के.पी.पद्धति, के.पी. शायान आदि की गणनाओं का समावेष के साथ, मुहूर्त्त चिन्तामणी, काल प्रकाषिका, मुहूर्त्त मार्तण्ड्, मुहूर्त्त कल्पर्दुम, मुहूर्त्त प्रकाष आदि रचित उत्कृष्ट ज्योतिषीय सॉफ्टवेयर द्वारा अंगिरा मॉड़र्न कम्प्यूटर्स से परम्परागत वैदिक जन्मपत्रिका / कृष्णमूर्ति पद्धति जन्मपत्रिका, लाल किताब, अंक ज्योतिष, वर्ष फल, कुण्डली मेलापक (गुण मिलान) एवं मुहूर्त्त आदि।
भारतीय ज्योतिष की उत्पत्ति वेदों से हुई है ( चार वेद चार उपवेद तथा वेदों को समझने के लिए छ: वेदांगों को समझना जरूरी है ये छ: वेदांग हैं - शिक्षा, व्याकरण, कल्प, छन्द , निरुक्त और ज्योतिष, जिसमें ज्योतिष भी एक अंग है ) तथा इसे वेदों का अंग एवं तीसरी आंख ( नेत्र ) भी माना जाता है। इसकी दृष्टि भूत भविष्य वर्तमान सभी को देखती और परखती है। इसलिए कहा गया है- " ऑंख तीसरी वेद की देखे तीनो काल । ज्योतिष उत्तर दे सभी कोई करो सवाल ।।" ये आध्यात्मिक विधा है और साथ-साथ विज्ञान भी है। बहुत से वे लोग जो ज्योतिष के सम्बन्ध में इसे अवैज्ञानिक कह कर नकारते हैं उन्हे इसके आधार भूमि का कोई भी ज्ञान नहीं है।
"ज्योतिष पर सीधी बात करने का अर्थ होता है कि वह जो सड़क पर ज्योतिषी बैठा है, शायद मैं उसके संबंध में कुछ कह रहा हूं। जिसको आप चार आने देकर और अपना भविष्य-फल निकलवा आते हैं, शायद उसके संबंध में या उसके समर्थन में कुछ कह रहा हूं। नहीं, ज्योतिष के नाम पर सौ में से निन्यानबे धोखाधड़ी है। और वह जो सौवां आदमी है, निन्यानबे को छोड़ कर उसे समझना बहुत मुश्किल है। क्योंकि वह कभी इतना डागमेटिक नहीं हो सकता कि कह दे कि ऐसा होगा ही। क्योंकि वह जानता है कि ज्योतिष बहुत बड़ी घटना है। इतनी बड़ी घटना है कि आदमी बहुत झिझक कर ही वहां पैर रख सकता है।"